मन आज बहुत विकल,
प्राण! सुन-सुन कल-कल।
पास इतने फिर भी, क्यों
दूरियों का पुल ?
सुर्ख रुखसारों पे, खिले ये लाल कमल,
विहंसते कजरारे नटखट नयन चंचल।
झंकृत जल तरंग लख उन्नत श्रीफल,
चढ़ा नशा जाए न उतर रूप का जल।
श्वासों का कपूर, प्रिये! उड़ रहा पल-पल,
मुहूर्त प्यार का जाए न कहीं टल।
फिर फिर झुमकाओं रूनझुन-रूनझुन पायल,
रहें या न रहें हम रहेगी प्रणय-ग़ज़ल।
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