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Thursday, October 4, 2012

कविता




खेत
हांकने से पहले
हल के
लोहे को
दहकती आग की भट्टी
लुहारन के हथौड़े की
चोट से गुजरना होता है
फिर
पानीदार
हल
जमीन जोत पाता है,
खेत में
फसल लहलहाने से पहले
किसान के भीतर
उगता है
बीज/उसका भविष्‍य
फूलता है, फलता है
पसीना,
अनुभूति
शब्‍दों के शिकंजे से मुक्‍त हो
सन्‍नाटे के विरुद्ध
नाद की गूंज तोड़
आदमी के स्‍वप्‍न
भविष्‍य के संस्‍कार गढ़ने को

अभिव्‍यक्‍त होती है कविता में।

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