पीठ पर
बोझा लादने का अर्थ
गुलामी नहीं,
हमने अपनी पीठ
लिए तुम्हें रौंदने
को दी है
कि हम भी जिन्दा रह
सकें
और
तुम आजाद कहला सको,
पीछ से चिपके पेट
कुड़मुड़ाती
अंतडि़यां
आंखों में गहराई
काली छाया
मशीनों की गड़गड़ाहट
में डूबे
हमारे अवकाश के क्षण
तुम्हारी आजादी को
बरकरार रखने के लिए
ऊर्जा देते हैं
जब तुम
स्वयं के बिके ईमान
की
काली ईटों से
निर्मित
अन्त:पुर में
किसी खरीदी हुई भूख
के साथ
विलासिता में डूबे
होते हो,
तब हम
गर्द झाड़ कर
शरीर की हडिड्यों को
दर्द की भट्टी में
सुलगाते हुए
जागते हैं
और
दिए की मंन्दिम लौ
में
बुझती सी
स्वातंत्र्य चेतना
को
अपने खून से सींचकर
फिर फिर धधकाते हैं।
------