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Sunday, July 8, 2012

आशा का बसन्‍त



आशा
मेरी जीवन सहचरी है
जो मुस्‍कान बन कर
मेरे ही अधरों पर नहीं
कृषक-बाला की
सहज उभरती तरुणाई-सी
बालियों में भी अंगड़ाई लेती है।
विश्‍वास मेरी
प्रियतमा के
पलकों की प्‍याली का
अमृत है
जिसकी छलकती हुई बूंदों के
इन्‍द्रधनुष
सूरज से भी आंख मिचौली खेलते हैं।
प्रीति और करुणा
मेरी प्रेयसी की
मदभरी आंखें हैं
जिनमें
अवसादों के मेघ घिर-घिर कर
तप्‍त हृदयों पर
दिलासा की झड़ी लगाते हैं।
घृणा और असत्‍यता
मेरी रानी की
दो-दो दासियां हैं
जो चरण चम्‍पी की गंगा में
अपने कालेपन को धोकर
कृपा को पात्र
बनना चाहती है।

मेरा भोग
बदलों की
रिमझिम के संगीत के साथ
नाचती-गाती फसल की
हरी जवानी का
छलकता आँसू है
जो
किसान की आँख में बसा है,
मेरा यौवन

आशा का बसन्‍त है।

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