सर्वाधिकार सुरक्षित

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

Click here for Myspace Layouts

Saturday, December 22, 2012

मरू का ढाणी-गांव




धू-धू जले 
धरती धोरां री
ज्‍यूं आव
जीवड़ों कलपे
पाणी-पाणी
मेघ-बाबा जल्‍दी आव।
श्रीहीन खेजडि़यां
ठूंठ खड़े रूंख
मनख डोर-डांगर
तरस्यां मर गया भूख।
नेतारी/बांच्‍छयां खिल गई
रेत पे तैरावे
कागद री नाव।
सूना पड्या झूंपा
सायं-सायं बोले बायर्ड़यो (हवा)
ठहाका मारे चारूं खूंट
अकाल माथे खड़यो।
जहां-तहां पड्या/मृत जिनावर (जानवर)
मरघट सो लागे
मरू ढाणी गांव।
आसवासना (आश्‍वासन) री अफीम
खातां बी गई सदी
गूजर रा फूल हुई
रेल मे जल री नदियां।
पेहरूआं रा घर/बिना दूब रा गलिचा
करज चकाती जणता (जनता)
चाले आप पे नाग्‍या (नंगा) पांव।
----

1 comment: