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Monday, August 13, 2012

गांव-गैल बरखा हुलसे




सावन बरसे, भादों बरसे।
तुम बिन सजना, नयना तरसे।।

झिरमिर-झिरमिर
यह चौमासा
मन का पपीहा
फिर भी प्‍यासा।

विराजे क्‍यों परदेशी पिया,
यौवन का यह बिरवा झुलसे।
तुम बिन सजना, नयना तरसे।।

चपल चंचला,
दप-दप दमके,
बूंदें आंगन
छमछम छुमके।

रोम-रोम का बदला मौसम,
भीगी परवा-फहार परसे,
तुम बिन सजना, नयना तरसे।।

हरियाले हैं ये सोमवार,
पिया मिलन के
तीज त्‍यौहार।

कजरी गाती, मेघ मल्‍हार,
गांव-गैल यह बरखा हुलसे।
तुम बिन सजना, नयना तरसे।।
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