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Saturday, May 12, 2012

भीड


खुली भीड
बन्‍द भीड
अनियंत्रित भीड
नारों और जयकारों की भीड
देखते हैं हम सब
अधिक सभ्‍य हो गए हैं
और बर्बरता
नए बोध का काला चश्‍मा लगा
घुल गई
चुस्‍त बहुरंगी सभ्‍यता में।
नए आयाम
नए प्रतीक
नये बोध
अत्‍याधुनिक युग का आविर्भाव
नील-नीलान्‍त अन्‍तरिक्ष की
खुलती सीढियां
मगर
ऊपर से नीचे को उतरता है
एक प्रश्‍न चिन्‍ह ?
उपलब्ध्यिों की अश्रुत गोद में
महा-अभाव के महा-शून्‍य में
आणविक – प्रक्षेपास्‍त्रों से
भयभीत
विष्‍मताओं की घाटियों में
गूंजता
पूछ रहा है अपनी ही आवाज में
कि नये आयाम पर
क्‍या पाया ?

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